डार्क हॉर्स BoOk ReViEw
एक अनकही दास्ताँ......
मुखर्जी नगर एक ऐसी जगह जहाँ लोग जाते हैं. बहुत सी किताबों और जिम्मेदारियों के बोझ के साथ..
इनके आलावा न जाने कितने बोझों तले दबे हुए हैं आज के युवा परिवार का दबाब और गलतियों से सबक लेते हुए न जाने कितनी उलझनों से पार पाकर उन सपनों को सार्थकता प्रदान करने वाले उस शहर जहाँ पर वर्षो से मौजूद बत्रा सिनेमा की दीवारों पर टंगे होडिंग इन्तेजार कर रहे होते हैं कि वो युवा जो रूसी क्रांति के नायको के बराबर की मेहनत कर खून पसीना एक कर एक दिन बैनरों में फोटोसहित हमारे साथ सेट कर दिए जायेंगे और बाकि युवा जो उन बैनरों को देख रहें होंगे वो भी या तो दुखी हो रहे होगे कि यार हम सिलेक्ट क्यों नहीं हुए इसके विपरीत वो चंद युवा भी होंगे जो सिलेक्ट हो चुके होंगे कोई आईएएस तो कोई आईपीएस तो कोई आईआरएस बन चुका होगा.
संतोष भी उन युवाओं में से एक था जो गाँव डुमरी का रहने वाला था जो कि भागलपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 40 किमी दूर पड़ता था.
जब उस दिन संतोष गाँव डुमरी से अपने सपनों का शहर मुखर्जी नगर के लिए निकला “संतोष ने माँ के पैर छुए, पीठ पर बैग लटकाया और बाइक पर विनायक बाबू के पीछे बैठ गए. विनायक बाबु संतोष के पिताजी थे. मुखर्जीनगर पहुँचकर किस प्रकार संतोष रायसाहब के टच में आता है फिर रुस्तम से रूम से रिलेटेड प्रॉब्लम के चक्कर में मिलना होता है और फिर मनोहर से . “ संतोष ने मनोहर के रूम को ध्यान से देखा तो सारा कमरा होलीवुड देवियों के सुन्दर मनोहारी चित्रों से सजा हुआ था. उसके ठीक सामने वाली दीवार पर एपीजे अब्दुल कलाम और विवेकानंद की तस्वीर थी.” इससे पता चल जाता है कि मुखर्जी नगर जाकर व्यक्ति आईएएस बने या न बने लेकिन आधुनिक इंसान जरूर बन जाता है. जैसा कि मनोहर था. मनोहर ने संतोष की हेल्प करने की पूरी कोशिश की . वह संतोष को प्रॉपर्टी डीलर टोनी से मिलवाने के लिए ले गया.
इन सबके बाद गुरु से मिलना. गुरु वो व्यक्ति था जो यूपीएससी का इन्टरव्यू फेस कर चुका था संतोष उसे भी ख़ास तवज्जो दे रहा था. विमलेन्दु, जावेद ,बोहिया सर, पायल और न जाने कितने ऐसे किरदार जो संतोष को न जाने कितने ही सबक सिखा गए .
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संतोष भी उन युवाओं में से एक था जो गाँव डुमरी का रहने वाला था जो कि भागलपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 40 किमी दूर पड़ता था.
जब उस दिन संतोष गाँव डुमरी से अपने सपनों का शहर मुखर्जी नगर के लिए निकला “संतोष ने माँ के पैर छुए, पीठ पर बैग लटकाया और बाइक पर विनायक बाबू के पीछे बैठ गए. विनायक बाबु संतोष के पिताजी थे. मुखर्जीनगर पहुँचकर किस प्रकार संतोष रायसाहब के टच में आता है फिर रुस्तम से रूम से रिलेटेड प्रॉब्लम के चक्कर में मिलना होता है और फिर मनोहर से . “ संतोष ने मनोहर के रूम को ध्यान से देखा तो सारा कमरा होलीवुड देवियों के सुन्दर मनोहारी चित्रों से सजा हुआ था. उसके ठीक सामने वाली दीवार पर एपीजे अब्दुल कलाम और विवेकानंद की तस्वीर थी.” इससे पता चल जाता है कि मुखर्जी नगर जाकर व्यक्ति आईएएस बने या न बने लेकिन आधुनिक इंसान जरूर बन जाता है. जैसा कि मनोहर था. मनोहर ने संतोष की हेल्प करने की पूरी कोशिश की . वह संतोष को प्रॉपर्टी डीलर टोनी से मिलवाने के लिए ले गया.
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