उनके लिए बचपन
भी एक सजा है....
हम उनसे बेहतर
जिन्दगी व्यतीत कर रहे हैं. और एक बेचारे वो लोग हैं जो दिनभर भीख मांगते, कचरा
बीनते और इसी तरह के अनेक काम जो हमारी नजर में छोटे हैं, करते नजर आते हैं. उनके
जीवन यापन का सिर्फ यही विकल्प होता है. उनका बचपन यूँ ही कुपोषण में ही बीत जाता
है. जब वो रात में अपनी झुग्गी झोपड़ियों में जाते हैं तो लोरी सुनाकर सुलाने वाली
माँ बीडी पी रही होती है और बाप देशी दारु पीके टुल्ल पड़ा होता है और बेमतलब में
गन्दी गन्दी गालियाँ निकाल रहा होता है.
- रात बीतती है अगला सवेरा होता है वो सजा भुगत रहे मासूम निकल पड़ते है पेट के लिए. अगर वो भीख न मागें तो शायद उन्हें भूखे ही सोना पड़े. और कडवा सच तो यह है कि भिखारी को कोई काम भी नही मिल पाता क्योंकि वह लोगों की नजरो में विश्वास के काबिल नही होता ......
पढ़ते रहें.................
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